1. परिस्थिति एवं उद्देश्य: जब किसी कर्मचारी को विभागीय जांच या न्यायिक कार्यवाही में दोषी ठहराया जाता है, और उसके खिलाफ अनिवार्य सेवा निवृत्ति (दण्डस्वरूप सेवानिवृत्ति) का आदेश जारी किया जाता है, तो वह कर्मचारी इस विशेष पेंशन श्रेणी में आ जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कर्मचारी, जिसके खिलाफ दण्डात्मक कार्रवाई की जाती है, उसे उसकी सेवा के बदले कुछ न्यूनतम आर्थिक सहारा प्रदान किया जाए।
2. पेंशन राशि का निर्धारण:
अधिकतम सीमा:
ऐसे मामलों में पेंशन की अधिकतम राशि क्षतिपूरक (Compensation) पेंशन के बराबर निर्धारित की जाती है।
न्यूनतम सीमा:
न्यूनतम पेंशन राशि क्षतिपूरक पेंशन के दो-तिहाई (66.67%) भाग के बराबर होनी चाहिए।
इस प्रकार, यदि क्षतिपूरक पेंशन का मान किसी कर्मचारी के लिए गणना करने पर x रुपये प्रति माह आता है, तो उसके लिए दण्डस्वरूप सेवानिवृत्ति पेंशन कम से कम (2/3)x रुपये होगी – और अधिकतम राशि x रुपये तक सीमित रहेगी।
3. न्यूनतम पेंशन में संशोधन: दिनांक 1.1.2016 से न्यूनतम स्वीकृत पेंशन राशि को पहले 3450 रुपये से बढ़ाकर 8850 रुपये कर दिया गया है। इसका अर्थ है कि किसी भी श्रेणी में पेंशन देने की स्थिति में, यदि गणना से प्राप्त राशि न्यूनतम पेंशन से कम आती है, तो उसे 8850 रुपये प्रति माह सुनिश्चित किया जाएगा।
नगद लाभ:
यह संशोधन 1.1.2017 से नगद लाभ (Cash Benefit) के रूप में लागू हो गया है, जिससे पेंशनधारक को तुरंत यह राशि प्राप्त हो सके।
4. नियम का प्रभाव और उद्देश्य:
आर्थिक सुरक्षा:
दण्डस्वरूप सेवानिवृत्ति के बावजूद, इस नियम का उद्देश्य कर्मचारी या उसके परिवार को एक न्यूनतम आर्थिक सहारा देना है, ताकि उनके जीवन स्तर पर अधिक प्रभाव न पड़े।
सेवा का मुआवजा:
क्षतिपूरक पेंशन के आधार पर पेंशन निर्धारण से यह सुनिश्चित होता है कि जब कर्मचारी को उसकी गलतियों के कारण सेवा से हटाया जाता है, तो उसे उसके द्वारा दी गई सेवा के अनुरूप मुआवजा मिले।
संशोधित न्यूनतम सीमा:
संशोधित न्यूनतम पेंशन राशि (8850 रुपये) यह दर्शाती है कि चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, कर्मचारी को न्यूनतम इस राशि का भुगतान सुनिश्चित किया जाता है।
5. अतिरिक्त स्पष्टीकरण: इस प्रावधान के अंतर्गत, पेंशन की गणना सामान्यतः अन्य पेंशन श्रेणियों (जैसे – असमर्थता पेंशन, सेवानिवृत्ति पेंशन, मुआवजा पेंशन) के लिए प्रयुक्त सूत्रों के आधार पर की जाती है। परंतु दण्डस्वरूप सेवानिवृत्ति के मामलों में, विशेष रूप से यह सुनिश्चित किया जाता है कि पेंशन की राशि क्षतिपूरक पेंशन के मान से कम न हो, जिससे यह सुनिश्चित हो कि कर्मचारी को उसके पद के उन्मूलन के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान का उचित मुआवजा मिल सके।
निष्कर्ष: नियम 42 के तहत, यदि किसी कर्मचारी को जांच में दोषी ठहराकर अनिवार्य सेवा निवृत्ति का आदेश दिया जाता है, तो उसे दण्डस्वरूप सेवानिवृत्ति पेंशन प्रदान की जाती है। इस पेंशन की राशि क्षतिपूरक पेंशन के बराबर (अधिकतम सीमा) या उसके दो-तिहाई (न्यूनतम सीमा) के अनुरूप होती है। साथ ही, 1.1.2016 से न्यूनतम स्वीकृत पेंशन राशि को बढ़ाकर 8850 रुपये कर दिया गया है, जिसका नगद लाभ 1.1.2017 से देय होता है।